5 Simple Statements About bhairav kavach Explained
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महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं में सर्वतो गिरा
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः
बटुकाय महेशानि स्तम्भने परिकीर्तितम् ।
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।
यस्य विज्ञानमात्रेण मन्त्रसिद्धिर्न संशयः ॥ २७॥
ॐ हृीं पाधौ महाकालः पातु वीरा सनो ह्रुधि
ॐ ह्रीं अन्नपूर्णा सदा पातु चांसौ रक्षतु चण्डिका ।
भुर्जे रंभात्वचि वापि लिखित्वा विधिवत्प्भो। ।
पातु साकलको भ्रातॄन् श्रियं मे सततं गिरः
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः।।
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ॥
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